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उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए - क़मर जलालवी कविता - Darsaal

उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए

उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए

सू-ए-दर देखा तो पहरों सू-ए-दर देखा किए

दिल को वो क्या देखते सोज़-ए-जिगर देखा किए

लग रही थी आग जिस घर में वो घर देखा किए

उन की महफ़िल में उन्हें सब रात भर देखा किए

एक हम ही थे कि इक इक की नज़र देखा किए

तुम सिरहाने से घड़ी भर के लिए मुँह फेर लो

दम न निकलेगा मिरी सूरत अगर देखा किए

मैं कुछ इस हालत से उन के सामने पहुँचा कि वो

गो मिरी सूरत से नफ़रत थी मगर देखा किए

फ़ाएदा क्या ऐसी शिरकत से अदू की बज़्म में

तुम उधर देखा किए और हम उधर देखा किए

शाम से ये थी तिरे बीमार की हालत कि लोग

रात भर उठ उठ के आसार-ए-सहर देखा किए

बस ही क्या था बे-ज़बाँ कहते भी क्या सय्याद से

यास की नज़रों से मुड़ कर अपना घर देखा किए

मौत आ कर सामने से ले गई बीमार को

देखिए चारागरों को चारा-गर देखा किए

रात भर तड़पा किया है दर्द-ए-फ़ुर्क़त से 'क़मर'

पूछ लो तारों से तारे रात भर देखा किए

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In Hindi By Famous Poet Qamar Jalalvi. is written by Qamar Jalalvi. Complete Poem in Hindi by Qamar Jalalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.