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करते भी क्या हुज़ूर न जब अपने घर मिले - क़मर जलालवी कविता - Darsaal

करते भी क्या हुज़ूर न जब अपने घर मिले

करते भी क्या हुज़ूर न जब अपने घर मिले

दुश्मन से हम कभी न मिले थे मगर मिले

बुलबुल पे ऐसी बर्क़ गिरी आँधियों के साथ

घर का पता चला न कहीं बाल-ओ-पर मिले

उन से हमें निगाह-ए-करम की उमीद क्या

आँखें निकाल लें जो नज़र से नज़र मिले

वादा ग़लत पते भी बताए हुए ग़लत

तुम अपने घर मिले न रक़ीबों के घर मिले

अफ़्सोस है यही मुझे फ़स्ल-ए-बहार में

मेरा चमन हो और मुझी को न घर मिले

चारों तरफ़ है शम-ए-मोहब्बत की रौशनी

परवाने ढूँड ढूँड के लाई जिधर मिले

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In Hindi By Famous Poet Qamar Jalalvi. is written by Qamar Jalalvi. Complete Poem in Hindi by Qamar Jalalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.