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बाग़-ए-आलम में रहे शादी-ओ-मातम की तरह - क़मर जलालवी कविता - Darsaal

बाग़-ए-आलम में रहे शादी-ओ-मातम की तरह

बाग़-ए-आलम में रहे शादी-ओ-मातम की तरह

फूल की तरह हँसे रो दिए शबनम की तरह

शिकवा करते हो ख़ुशी तुम से मनाई न गई

हम से ग़म भी तो मनाया न गया ग़म की तरह

रोज़ महफ़िल से उठाते हो तो दिल दुखता है

अब निकलवाओ तो फिर हज़रत-ए-आदम की तरह

लाख हम रिंद सही हज़रत-ए-वाइ'ज़ लेकिन

आज तक हम ने न पी क़िब्ला-ए-आलम की तरह

तेरे अंदाज़-ए-जराहत के निसार ऐ क़ातिल

ख़ून ज़ख़्मों पे नज़र आता है मरहम की तरह

ख़ौफ़ दिल से न गया सुब्ह के होने का 'क़मर'

वस्ल की रात गुज़ारी है शब-ए-ग़म की तरह

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In Hindi By Famous Poet Qamar Jalalvi. is written by Qamar Jalalvi. Complete Poem in Hindi by Qamar Jalalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.