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जीना है सब के साथ कि इंसान मैं भी हूँ - क़मर इक़बाल कविता - Darsaal

जीना है सब के साथ कि इंसान मैं भी हूँ

जीना है सब के साथ कि इंसान मैं भी हूँ

चेहरे बदल बदल के परेशान मैं भी हूँ

झोंका हवा का चुपके से कानों में कह गया

इक काँपते दिए का निगहबान मैं भी हूँ

इंकार अब तुझे भी है मेरी शनाख़्त से

लेकिन न भूल ये तिरी पहचान मैं भी हूँ

आँखों में मंज़रों को जब आबाद कर लिया

दिल ने किया ये तंज़ कि वीरान मैं भी हूँ

अपने सिवा किसी से नहीं दुश्मनी 'क़मर'

हर लम्हा ख़ुद से दस्त ओ गरेबान मैं भी हूँ

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In Hindi By Famous Poet Qamar Iqbal. is written by Qamar Iqbal. Complete Poem in Hindi by Qamar Iqbal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.