हर ख़ुशी मक़बरों पे लिख दी है
और उदासी घरों पे लिख दी है
एक आयत सी दस्त-ए-क़ुदरत ने
तितलियों के परों पे लिख दी है
जालियों को तराश कर किस ने
हर दुआ पत्थरों पे लिख दी है
लोग यूँ सर छुपाए फिरते हैं
जैसे क़ीमत सरों पे लिख दी है
हर वरक़ पर हैं कितने रंग 'क़मर'
हर ग़ज़ल मंज़रों पे लिख दी है