एक दीवार अगर हो तो यहाँ सर मारें
एक दीवार अगर हो तो यहाँ सर मारें
एक दीवार के पीछे हैं कई दीवारें
हम को लौटा दे हमारा वो पुराना चेहरा
ज़िंदगी तेरे लिए रूप कहाँ तक धारें
पास कुछ अपने बचा है तो यही इक लम्हा
आख़िरी दाव है जीतें कि ये बाज़ी हारें
तुम कभी आग में पल भर तो उतर के देखो
कौन कहता है कि शोलों में नहीं महकारें
क़ैद हैं कौन से ज़िंदाँ में न जाने हम लोग
रोज़ ऊँची हुई जाती हैं 'क़मर' दीवारें
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