ये कौन है जो सर-ए-रोज़गार आया है
ये कौन है जो सर-ए-रोज़गार आया है
कहा कि इश्क़ का परवरदिगार आया है
वो एक ताइर-ए-बे-पर अज़ाब में जल कर
सब हिजरतों की मसाफ़त गुज़ार आया है
हमें न वस्ल के क़िस्से सुनाओ रहने दो
हमारे हक़ में फ़क़त इंतिज़ार आया है
जो आया शहर-ए-अदम से जहान-ए-हस्ती में
ये वाक़िआ' है कि बे-इख़्तियार आया है
ये क्या विसाल कि आख़िर मिरी मोहब्बत पर
ब-वक़्त-ए-मर्ग उसे ए'तिबार आया है
उसे ख़बर ही नहीं दिल रह-ए-मोहब्बत में
ग़म-ए-हयात का सदक़ा उतार आया है
क़तील-ए-शौक़-ए-नज़र हिजरतों का मारा 'क़मर'
तुम्हारे शहर से बस अश्क-बार आया है
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