शोरिश-ए-हर्फ़ है अयाग़ में कुछ
शोरिश-ए-हर्फ़ है अयाग़ में कुछ
लिख क़लम मंज़िल-ए-बलाग़ में कुछ
देखे जाता है वो क़दम के निशाँ
मिल गया है उसे सुराग़ में कुछ
आफ़्ताब और ये सियह-ख़ाना
तू ने देखा है दिल के दाग़ में कुछ
सारी दुनिया को मार दी ठोकर
आ गया था मिरे दिमाग़ में कुछ
ज़िक्र-ए-बाग़-ए-नईम है वल्लाह
लुत्फ़ आने लगा फ़राग़ में कुछ
बुझ रहा है उफ़ुक़ पे अब सूरज
आप रख दीजिए चराग़ में कुछ
ऐ 'क़मर' आँख से उतर दिल में
ज़ौ-फ़िशानी हो दिल के बाग़ में कुछ
(508) Peoples Rate This