ऐ उम्र-ए-नाज़ तुझ को गुज़ारे गुज़र न था
ऐ उम्र-ए-नाज़ तुझ को गुज़ारे गुज़र न था
हम बोरिया-नशीनों का कोई भी घर न था
दुनिया-ए-हस्त-ओ-बूद में मेरे सिवा तुझे
सब काबिल-ए-क़ुबूल थे मैं मो'तबर न था
ये दिल जो मेरे सीने में बजता है रात-दिन
वो दर्द सह चुका है कि जो मुख़्तसर न था
इक चाँद रो रहा था सर-ए-आसमान-ए-इश्क़
तारों की अंजुमन में कोई चारागर न था
ये शोर-ओ-ग़लग़ला है कि लुटता है मय-कदा
क्या वाँ पे कोई 'ग़ालिब'-ए-आशुफ़्ता-सर न था
थे अंदरून-ए-ज़ात कई लाख हादसात
लेकिन तुम्हारी याद से दिल बे-ख़बर न था
इम्काँ चहार सू था सफ़र का मगर 'क़मर'
तन्हा खड़ा हुआ था कोई हम-सफ़र न था
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