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बदला मिज़ाज-ए-हुस्न तो वो रू-ब-रू नहीं - क़ैसर उस्मानी कविता - Darsaal

बदला मिज़ाज-ए-हुस्न तो वो रू-ब-रू नहीं

बदला मिज़ाज-ए-हुस्न तो वो रू-ब-रू नहीं

वो इश्वा-ओ-अदा नहीं वो गुफ़्तुगू नहीं

दिल से तुझे निकाल के कुछ मुतमइन तो हूँ

फिर भी कहूँ ये कैसे तिरी जुस्तुजू नहीं

ख़ुशबू न जिन की फैले फ़ज़ाओं में चार-सू

गुलशन में ऐसे फूलों की कुछ आबरू नहीं

जब से निज़ाम-ए-मय-कदा बदला है दोस्तो

वो मय नहीं वो जाम नहीं वो सुबू नहीं

चर्चे वो दोस्तों ने दिए हैं कि अल-अमाँ

अब राह-ओ-रस्म की भी मुझे आरज़ू नहीं

'क़ैसर' हर इक तरफ़ है गिरानी का तज़्किरा

लेकिन ज़रा बताइए सस्ता लहू नहीं

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In Hindi By Famous Poet Qaisar Usmani. is written by Qaisar Usmani. Complete Poem in Hindi by Qaisar Usmani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.