ब-रंग-ए-निकहत-ए-गुल है चमन में आशियाँ अपना
ब-रंग-ए-निकहत-ए-गुल है चमन में आशियाँ अपना
किसी के राज़दाँ हम हैं न कोई राज़-दाँ अपना
चले तो जा रहे हैं क्या बताएँ कल कहाँ होंगे
ख़ुदा मा'लूम किस मंज़िल पे ठहरे कारवाँ अपना
यही अच्छा हुआ महफ़िल में तेरी चुप रहे वर्ना
ग़म-ए-दिल की कहानी और फिर तर्ज़-ए-बयाँ अपना
सुपुर्द-ए-इश्क़ हम तो कर चुके सर्माया-ए-हस्ती
जो अहल-ए-होश हैं सोचा करें सूद-ओ-ज़ियाँ अपना
हुआ ही चाहती है शाम भी अब सुब्ह पीरी की
मगर अब तक तो है पहलू में 'क़ैसर' दिल जवाँ अपना
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