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ज़ेहन में कौन से आसेब का डर बाँध लिया - क़ैसर-उल जाफ़री कविता - Darsaal

ज़ेहन में कौन से आसेब का डर बाँध लिया

ज़ेहन में कौन से आसेब का डर बाँध लिया

तुम ने पूछा भी नहीं रख़्त-ए-सफ़र बाँध लिया

बे-मकानी की भी तहज़ीब हुआ करती है

उन परिंदों ने भी एक एक शजर बाँध लिया

रास्ते में कहीं गिर जाए तो मजबूरी है

मैं ने दामान-ए-दरीदा में हुनर बाँध लिया

अपने दामन पे नज़र कर मिरे हाथों पे न जा

मैं ने पथराओ किया तू ने समर बाँध लिया

घर खुला छोड़ के चुपके से निकल जाऊँगा

शाम ही से सर-ओ-सामान-ए-सहर बाँध लिया

उम्र भर मैं ने भी साहिल के क़सीदे लिक्खे

मेरे बच्चों ने भी इक रेत का घर बाँध लिया

हार बेदर्द हवाओं से न मानी 'क़ैसर'

बादबाँ फेंक के क़दमों से भँवर बाँध लिया

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In Hindi By Famous Poet Qaisar-ul-Jafri. is written by Qaisar-ul-Jafri. Complete Poem in Hindi by Qaisar-ul-Jafri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.