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तिरी बेवफ़ाई के बाद भी मिरे दिल का प्यार नहीं गया - क़ैसर-उल जाफ़री कविता - Darsaal

तिरी बेवफ़ाई के बाद भी मिरे दिल का प्यार नहीं गया

तिरी बेवफ़ाई के बाद भी मिरे दिल का प्यार नहीं गया

शब-ए-इंतिज़ार गुज़र गई ग़म-ए-इंतिज़ार नहीं गया

मैं समुंदरों का नसीब था मिरा डूबना भी अजीब था

मिरे दिल ने मुझ से बहुत कहा मैं उतर के पार नहीं गया

तू मिरा शरीक-ए-सफ़र नहीं मिरे दिल से दूर मगर नहीं

तिरी मम्लिकत न रही मगर तिरा इख़्तियार नहीं गया

उसे इतना सोचा है रोज़ ओ शब कि सवाल-ए-दीद रहा न अब

वो गली भी ज़ेर-ए-तवाफ़ है जहाँ एक बार नहीं गया

कभी कोई वादा वफ़ा न कर यूँही रोज़ रोज़ बहाना कर

तू फ़रेब दे के चला गया तिरा ए'तिबार नहीं गया

मुझे उस के ज़र्फ़ की क्या ख़बर कहीं और जा के हँसे अगर

मिरे हाल-ए-दिल पे तो रोए बिन कोई ग़म-गुसार नहीं गया

उसे क्या ख़बर कि शिकस्तगी है जुनूँ की मंज़िल-ए-आगही

जो मता-ए-शीशा-ए-दिल लिए सर-ए-कू-ए-यार नहीं गया

मिरी ज़िंदगी मिरी शाइरी किसी ग़म की देन है 'जाफ़री'

दिल ओ जाँ का क़र्ज़ चुका दिया मैं गुनाहगार नहीं गया

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In Hindi By Famous Poet Qaisar-ul-Jafri. is written by Qaisar-ul-Jafri. Complete Poem in Hindi by Qaisar-ul-Jafri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.