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मुँह फेर कर वो सब से गया भी तो क्या गया - क़ैसर सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

मुँह फेर कर वो सब से गया भी तो क्या गया

मुँह फेर कर वो सब से गया भी तो क्या गया

कम-बख़्त सारे शहर को पागल बना गया

पत्थर को बोलने की अदाएँ सिखा गया

वो शख़्स कैसे कैसे तमाशे दिखा गया

उस को यहाँ से जाने का बेहद मलाल था

मुड़ मुड़ के अपने घर की तरफ़ देखता गया

दुनियाए-ख़्वाब और हक़ीक़त के दरमियाँ

थोड़ा जो फ़ासला था उसे भी मिटा गया

सब जानते हुए भी मैं अंजान ही रहा

इस ने समझ लिया कि मैं धोके में आ गया

ये कौन दे रहा है दर-ए-दिल पे दस्तकें

ये कौन मेरे ख़्वाब की दीवार ढा गया

कुछ और पूछने की ज़रूरत नहीं रही

हल्के से मुस्कुरा के वो सब कुछ बता गया

दे तो गया अज़ाब-ए-जुदाई मुझे मगर

गिर्हें जो दिल में थीं वो उन्हें खोलता गया

कोई भी उज़्र-ए-लंग की सूरत नहीं रही

लो अब तुम्हारे सामने आईना आ गया

जिस का हर एक नक़्श कफ़-ए-पा है आइना

इस राह-रौ को ढूँडने ख़ुद रास्ता गया

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In Hindi By Famous Poet Qaisar Siddiqi. is written by Qaisar Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Qaisar Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.