साज़ से मेरे ग़लत नग़्मों की उम्मीद न कर
आग की आग है दिल में तो धुआँ क्यूँकर हो
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शिकस्ता ख़्वाब के मलबे में ढूँढता क्या है
थोड़ी सी शोहरत भी मिली है थोड़ी सी बदनामी भी
कहाँ है कोई ख़ुदा का ख़ुदा के बंदों में
किसी मंज़िल में भी हासिल न हुआ दिल को क़रार
सुलग रही है ज़मीं या सिपहर आँखों में
सब्ज़ मौसम से मुझे क्या लेना
एक पौदा जो उगा है उसे पानी देना
वो जो सब का बहुत चहीता था
होने लगे हैं रस्ते रस्ते, आपस के टकराव बहुत
मौसम तो बदलते हैं लेकिन क्या गर्म हवा क्या सर्द हवा
मौसम अजीब रहता है दल के दयार का
उबलते पानियों में हूँ कहाँ उबाल की तरह