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अब दूर तलक याद का सहरा है नज़र में - क़ैसर अब्बास कविता - Darsaal

अब दूर तलक याद का सहरा है नज़र में

अब दूर तलक याद का सहरा है नज़र में

कुछ रोज़ तो रहना है इसी राहगुज़र में

हम प्यास के जंगल की कमीं-गह से न निकले

दरिया-ए-इनायत का किनारा था नगर में

किस के लिए हाथों की लकीरों को उभारें

अपना तो हर इक पल है सितारों के असर में

अब ख़्वाब भी देखे नहीं जाते कि ये आँखें

बस जागती रहती हैं तिरे साया-ए-दर में

किस के लिए पैरों को अज़िय्यत में रखा जाए

ख़ुद ढूँड के तन्हाई चली आई है घर में

फिर ज़िल्ल-ए-इलाही के सवारों की सदा आई

फिर कौन हुआ मोरीद-ए-इल्ज़ाम नगर में

'क़ैसर' भी सलीब अपनी उठाए हुए गुज़रा

कहते हैं कि ख़ुद्दार था जीने के हुनर में

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In Hindi By Famous Poet Qaisar Abbas. is written by Qaisar Abbas. Complete Poem in Hindi by Qaisar Abbas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.