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जहान-ए-आरज़ू आवाज़ ही आवाज़ होता है - क़ाबिल अजमेरी कविता - Darsaal

जहान-ए-आरज़ू आवाज़ ही आवाज़ होता है

जहान-ए-आरज़ू आवाज़ ही आवाज़ होता है

बड़ी मुश्किल से एहसास-ए-शिकस्त-ए-साज़ होता है

हमें क्या आप अंजाम-ए-मोहब्बत से डराते हैं

हमारे ख़ून से हर दौर का आग़ाज़ होता है

क़फ़स है दाम है भड़की हुई है आतिश-ए-गुल भी

इसी माहौल में अंदाज़ा-ए-परवाज़ होता है

पिघल जाती हैं ज़ंजीरें सुलग उठती हैं दीवारें

लब-ए-ख़ामोश में वो शोला-ए-आवाज़ होता है

मोहब्बत की हक़ीक़त खुल गई चाक-ए-गिरेबाँ से

जुनूँ भी एक मंज़िल में ज़माना-साज़ होता है

हमीं पर मुनहसिर है रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ 'क़ाबिल'

कोई नग़्मा हो अपना ही रहीन-ए-साज़ होता है

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In Hindi By Famous Poet Qabil Ajmeri. is written by Qabil Ajmeri. Complete Poem in Hindi by Qabil Ajmeri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.