हादसे ज़ीस्त की तौक़ीर बढ़ा देते हैं
हादसे ज़ीस्त की तौक़ीर बढ़ा देते हैं
ऐ ग़म-ए-यार तुझे हम तो दुआ देते हैं
तेरे इख़्लास के अफ़्सूँ तिरे वादों के तिलिस्म
टूट जाते हैं तो कुछ और मज़ा देते हैं
कू-ए-महबूब से चुप-चाप गुज़रने वाले
अरसा-ए-ज़ीस्त में इक हश्र उठा देते हैं
हाँ यही ख़ाक-बसर सोख़्ता-सामाँ ऐ दोस्त
तेरे क़दमों में सितारों को झुका देते हैं
सीना-चाकान-ए-मोहब्बत को ख़बर है कि नहीं
शहर-ए-ख़ूबाँ के दर-ओ-बाम सदा देते हैं
हम ने उस के लब ओ रुख़्सार को छू कर देखा
हौसले आग को गुलज़ार बना देते हैं
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