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हरम-सरा-ए-नाज़ है कि दर-ए-गह-ए-नियाज़ है - पंडित अमर नाथ होशियार पुरी कविता - Darsaal

हरम-सरा-ए-नाज़ है कि दर-ए-गह-ए-नियाज़ है

हरम-सरा-ए-नाज़ है कि दर-ए-गह-ए-नियाज़ है

निगाह-ए-नीम-बाज़ भी निगाह-ए-नीम-बाज़ है

इधर-उधर जहाँ-तहाँ मजाज़ ही मजाज़ है

कहीं कहीं नशेब है कहीं कहीं फ़राज़ है

न तिश्नगी न इश्तिहा न हिर्स है न आर है

ज़बान-ए-ग़ज़नवी पे अब अयाज़ ही अयाज़ है

न मय-कदे की बात कर न बुत-कदे की बात कर

वहाँ भी इम्तियाज़ है यहाँ भी इम्तियाज़ है

बशर बशर को देख कर गुलाब की तरह खिले

यही मिरी अज़ान है यही मिरी नमाज़ है

वो आएँगे नहीं-नहीं नहीं-नहीं वो आएँगे

ये राज़ राज़ ही रहे दिल-ए-हज़ीं ये राज़ है

किसी से दोस्ती नहीं किसी से दुश्मनी नहीं

न ख़ार से कशा-कशी न गुल से साज़-बाज़ है

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In Hindi By Famous Poet Pundit Amar Nath Hoshiyarpuri. is written by Pundit Amar Nath Hoshiyarpuri. Complete Poem in Hindi by Pundit Amar Nath Hoshiyarpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.