आए आने को हज़ारों ग़म हज़ारों ग़म गए
आए आने को हज़ारों ग़म हज़ारों ग़म गए
ग़म ज़ियादा से ज़ियादा आए कम से कम गए
दम दिलासे हौसले देते मसीहा दम गए
आए बे-हद ख़ुश मगर बा-दीदा-ए-पुर-नम गए
अब न आना तुम पए बीमार-पुर्सी दोस्तो
अब यही अल्फ़ाज़ काफ़ी हैं तुम आए हम गए
उड़ गए तो उड़ गए काफ़ूर की मानिंद हम
जम गए तो अंजुमन में सूरत-ए-यख़ जम गए
दर-ब-दर धूनी रमाने वाले रमते अब कहाँ
दर-ब-दर धूनी रमाने वाले रमते रम गए
यूरिश-ए-बर्क़-ओ-बला में कब मिरा दम-ख़म गया
जल गई रस्सी तो क्या क्या उस के पेच-ओ-ख़म गए
अब तो अपने आप में भी हज़रत-ए-आदम नहीं
अब तो अपने आप से भी हज़रत-ए-आदम गए
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