ख़्वाब जो अच्छे बुरे थे
ख़्वाब जो अच्छे बुरे थे
मेरे अंदर पल रहे थे
एक चुप्पी तुम ने चाही
मैं ने अपने लब सिए थे
आज़माइश वक़्त ने की
सब यक़ीं टूटे पड़े थे
उम्र भर चल कर न पहुँचे
जाने कैसे मरहले थे
नींद आँखों से जुदा थी
ख़्वाब में भी रतजगे थे
दिन महीने साल गुज़रे
यूँ तो हम कल ही मिले थे
लफ़्ज़ थे बाहें पसारे
और ग़ज़ल को कुछ गिले थे
थी पुरानी फ़िल्म दुनिया
चेहरे सब देखे सुने थे
फ़ासलों का डर किसे था
पाँव पर रस्ते लिखे थे
उस ने बरता था तकल्लुफ़
मेरे भी कुछ मसअले थे
चाँद तारों की जगह पर
अब्र पर जुगनूँ टँगे थे
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