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ऐसा जीना भी क्या है मर मर के - पूजा भाटिया कविता - Darsaal

ऐसा जीना भी क्या है मर मर के

ऐसा जीना भी क्या है मर मर के

वो जहाँ भी रहे रहे डर के

अब किसी तरह दिल नहीं लगता

घर में सब कुछ तो है सिवा घर के

साँस का बोझ अब नहीं उठता

जिस्म ख़ाली है धड़ बिना सर के

उस को जाने की कितनी जल्दी थी

बात सारी कही प कम कर के

जल्वा देखा लहू का उस ने जब

होश ही उड़ गए थे ख़ंजर के

रेत-ओ-साहिल में सुल्ह फिर न हुई

थक गई मौज इल्तिजा कर के

ज़ख़्म कुछ इस तरह से हँसते हैं

अश्क बहने लगे हैं नश्तर के

रास आया ग़म-ए-शनासाई

वार पहचान के थे ख़ंजर के

उस को नाराज़ होना आता है?

वारी जाऊँ मैं ऐसे तेवर के

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In Hindi By Famous Poet Puja Bhatia. is written by Puja Bhatia. Complete Poem in Hindi by Puja Bhatia. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.