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अँधेरा - प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’ कविता - Darsaal

अँधेरा

अभी रौशन है ये चराग़

तो ये न समझो

की अब अँधेरे का

कोई वजूद ही न रहा

की वो

रौशनी की तलवार से काट कर

मेरा जा चुका है

इस धोके में न रहना

की वो हमेशा की लिए

ख़रीदा जा चुका है

उस ने तो बस इक चालाक और शातिर

सिपाह सालार की तरह

अपनी पहली हार को

पहली बाज़ी जीतने वाले दुश्मन की

जगमगाहटी वर्दी में छुपा लिया है

और इस के ख़ेमे में

इस तरह घुल मिल गया है

जैसे अब उस का अपना कोई वजूद न हो

लेकिन दर-अस्ल वो

समाया हुआ है इन्हीं उजालों की ज़ात में

इस चराग़ की जलने की वज्ह बन कर

यहीं कहीं

इसी रात में

बड़े सब्र से इस घात में

कि कब ये लौ पड़े मद्धम

और वो टूट पड़े

इक शहबाज़ की मानिंद

अपने सियाह डाइने फैलाए

और ग़नीमत के कमज़ोर फ़ाख़्ते को

अपने चंगुल में दबोच ले जाए

मेरी बात का यक़ीन न आए

तो चंद लम्हों के लिए

कोई ये चराग़ यहाँ से ले जाए

अभी रौशन है ये चराग़

तो आँधियों से बचाओ उसे

ये ने समझाओ कि अब अँधेरे का

कोई वजूद ही न रहा

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In Hindi By Famous Poet Priyadarshi Thakur 'Khayal'. is written by Priyadarshi Thakur 'Khayal'. Complete Poem in Hindi by Priyadarshi Thakur 'Khayal'. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.