किसी के साथ गया मुद्दतें गुज़ार आया
किसी के साथ गया मुद्दतें गुज़ार आया
बड़े दिनों में कहीं जा के फिर क़रार आया
नहीं है ख़्वाब ये सच है न ए'तिबार आया
ये क्या हुआ कि उन्हें और मुझ पे प्यार आया
गया था आँखों में उम्मीद की किरन ले कर
मैं उस के शहर से लौटा तो अश्क-बार आया
वो था जहाज़ का पंछी न मैं जहाज़ कोई
न काम सब्र ही आया न इंतिज़ार आया
फ़राज़-ए-कोह का रस्ता भी था कड़ा लेकिन
'ख़याल' काँप उठी रूह जब उतार आया
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