बारे ग़म कुछ हल्का होता
बारे ग़म कुछ हल्का होता
रो लेते तो अच्छा होता
चाँद सितारे माँगे हम ने
कुछ तो आख़िर सोचा होता
पाँव तमाज़त माँग रहे हैं
सर की ख़्वाहिश साया होता
कुछ रक्खा है इन बातों में
ऐसा होता वैसा होता
मैं जो पा जाता तो तुझ को
अब तक भूल भी बैठा होता
लुत्फ़-ए-जवानी लूटा हम ने
दौर-ए-ज़ईफ़ी किस का होता
काश ये लफ़्ज़ परों से होते
और 'ख़याल' परिंदा होता
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