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इक यही वस्फ़ है इस में जो अमर लगता है - प्रिया ताबीता कविता - Darsaal

इक यही वस्फ़ है इस में जो अमर लगता है

इक यही वस्फ़ है इस में जो अमर लगता है

वो कड़ी धूप में बरगद का शजर लगता है

यूँ तो चाहत में निहाँ जून की हिद्दत है मगर

सर्द लहजे में दिसम्बर का असर लगता है

जब से जाना कि वो हम-शहर है मेरा तब से

शहर-ए-लाहौर भी जादू का नगर लगता है

जाने कब गर्दिश-ए-अय्याम बदल डाले तुझे

जीत कर तुझ को मुझे हार से डर लगता है

चाहे कितनी ही सजावट से मुज़य्यन हो मगर

माँ नज़र आए तो घर अस्ल में घर लगता है

इस क़दर उस की निगाहों में तक़द्दुस है निहाँ

सर झुकाती हूँ तो पीपल का शजर लगता है

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In Hindi By Famous Poet Priya Tabita. is written by Priya Tabita. Complete Poem in Hindi by Priya Tabita. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.