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खुल गई खिड़की अचानक फिर भी मुझ को डर न था - प्रेमी रूमानी कविता - Darsaal

खुल गई खिड़की अचानक फिर भी मुझ को डर न था

खुल गई खिड़की अचानक फिर भी मुझ को डर न था

अब मिरी आँखों में कोई रात का मंज़र न था

बह रहा था चार सू इक रेत का दरिया मगर

जिस जगह पर मैं खड़ा था रास्ता बंजर न था

शहर के सारे मकाँ लगने लगे हैं एक से

जिस मकाँ में भी गया देखा मेरा वो घर न था

याद जब करने लगा तब रंग-ए-मौसम भी खुला

लोग कहते थे कि तुग़्यानी भरा सागर न था

रास्ते 'प्रेमी' सभी क्यूँ खो गए गुम हो गए

इस से पहले इतनी गहरी धुँद का मंज़र न था

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In Hindi By Famous Poet Premi Rumani. is written by Premi Rumani. Complete Poem in Hindi by Premi Rumani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.