सनसनाती हुई हवा की तरह
यूँ तिरी याद ज़ेहन में आई
दिन-ढले दूर जंगलों में कहीं
जैसे रोती हो शाम-ए-तन्हाई
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दुनिया सोचे शौक़ से सोचे आज और कल के बारे में
रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब
कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता
पहले तो बहुत गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ा हूँ
सुरज का अलमिया
पथर
हो गया हूँ हर तरफ़ बद-नाम तेरे शहर में
तुम ने लिक्खा है
देखो कि दिल-जलों की क्या ख़ूब ज़िंदगी है
सुर्ख़ होंटों की ताज़गी के लिए
किस ने देखे होंगे अब तक ऐसे नए निराले पत्थर