फिर बजे मेरे ख़यालों में सुनहरे कंगन
भूले-बिसरे हुए लम्हात मुझे याद आए
ईद के रोज़ किसी ने भी दुआ जब माँगी
दो हसीं मेहंदी लगे हात मुझे याद आए
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कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
झिलमिलाते हुए सपनों का स्वयंवर बन कर
सलीक़ा है मुझे तारों से लौ लगाने का
रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब
सुर्ख़ होंटों की ताज़गी के लिए
ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता
दुनिया सोचे शौक़ से सोचे आज और कल के बारे में
नग़्मा नुमा
सुरज का अलमिया
कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
अना और अंदेशा