हाथ जो बहर-ए-दुआ उठे हैं झुक जाएँगे
हर नज़र तिश्ना-ब-लब हो के दुहाई देगी
आप पर्दे में छुपा लेंगी न चेहरा जब तक
ईद के चाँद की सूरत न दिखाई देगी
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(836) Peoples Rate This
मावरा
नुक़ूश
अपने माथे पर सजाए हुए संदल का तिलक
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह
रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
झुक गईं मिल के अजनबी आँखें
आज क्या देखा ख़लाओं के सुनहरे ख़्वाब में
फिरते रहे अज़ल से अबद तक उदास हम