बहुत मुख़्तसर सा तआ'रुफ़ है मेरा
न जोश-ए-जुनूँ हूँ न राज़-ए-निहाँ हूँ
किताबों में मुझ को कहाँ ढूँडते हो
मैं चेहरे पर लिक्खी हुई दास्ताँ हूँ
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2173) Peoples Rate This
हाथ जो बहर-ए-दुआ उठे हैं झुक जाएँगे
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
नुक़ूश
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
दीदा-ए-दिल को यूँ नज़र आया
आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की
सिगरेट
पहले तो बहुत गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ा हूँ
कितने पाकीज़ा हैं नौ-ख़ेज़ जवानी के कलस
तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो