कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
ज़िंदगी शाम है और शाम ढली जाए है
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
देखो कि दिल-जलों की क्या ख़ूब ज़िंदगी है
न अहल-ए-मय-कदा ने मुस्कुरा कर बात की हम से
ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता
ओस में भीगी हुई तन्हाइयों के जिस्म से
अना और अंदेशा
नग़्मा नुमा
सिगरेट
आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की
आख़िर उस की सूखी लकड़ी एक चिता के काम आई
तेरी ख़ुश-रंग चूड़ियाँ अब तक
सुरज का अलमिया