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सुरज का अलमिया - प्रेम वारबर्टनी कविता - Darsaal

सुरज का अलमिया

मिरे पीछे बहुत पीछे

मिरे माज़ी के लम्बे ग़ार में साँपों का डेरा है

जहाँ पुर-हौल हैबतनाक भूतों का बसेरा है

मिरे आगे बहुत आगे

मिरा रंगीन मुस्तक़बिल है इक फूलों की वादी है

कि जिस की गोद में ख़्वाबों की अल्हड़ शाहज़ादी है

मिरे पीछे

अँधेरे ग़ार हैं मकड़ी के जाले हैं

मिरे आगे

सुनहरे ख़्वाब हैं किरनों के हाले हैं

मैं सरगर्म-ए-सफ़र हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ लेकिन

मिरी बढ़ती हुई वहशत का आलम कोई क्या जाने

ये लम्हे हाँ यही उड़ते हुए लम्हे न हाथ आए

उजड़ कर रह गए ख़ुश-रंग ख़्वाबों के सनम-ख़ाने

मैं अपने ही लहू की आग में जलता रहा बरसों

खनकते ही रहे हर बज़्म हर महफ़िल में पैमाने

मैं अपने दौर का महर-ए-दरख़्शाँ हूँ मगर फिर भी

ये अंधा वक़्त शायद उम्र भर मुझ को न पहचाने

ये अंधा वक़्त शायद उम्र भर मुझ को न पहचाने

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In Hindi By Famous Poet Prem Warbartani. is written by Prem Warbartani. Complete Poem in Hindi by Prem Warbartani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.