नग़्मा नुमा
मिरी तन्हाइयो तुम ही लगा लो मुझ को सीने से
कि मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो रो के जीने से
ये आधी रात को फिर चूड़ियाँ सी क्या खनकती हैं
कोई आता है या मेरी ही ज़ंजीरें छनकती हैं
ये बातें किस तरह पूछूँ में सावन के महीने से
मिरी तनहाइयो तुम ही लगा लो मुझ को सीने से
मुझे पीने दो अपने ही लहू का जाम पीने दो
न सीने दो किसी को भी मिरा दामन न सीने दो
मिरी वहशत न बढ़ जाए कहीं दामन के सीने से
मिरी तनहाइयो तुम ही लगा लो मुझ को सीने से
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