गर्लफ्रेंड
सुरमई रेत की पगडंडी पर
संग-ए-मरमर की चटानों का दिल-आवेज़ शबाब
शाम के शोला-नफ़स रंग में तहलील हुआ
हाथ में हाथ लिए बढ़ते रहे दो साए
और ख़ामोश चनारों की सुलगती आँखें
महव-ए-दीदार रहीं
दो जवाँ ख़्वाब, खुले जिस्म, बरहना जामे
एक ही लय में धड़कते हुए दो हंगामे
जाम थे हाथ में दोनों के मगर आँखों में
एक मचला हुआ अरमान था मद-होशी का
क्या जुनूँ-ख़ेज़ नज़ारा था हम-आग़ोशी का
लज़्ज़त-ए-वस्ल से सरशार थे दीवाने दो
दफ़अतन दूर जूँही शाम ढले दीप जले
कोई बिखरी हुई ज़ुल्फ़ों को झटक कर बोला
मुझ को मिलना है किसी और से भी जाने दो
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