Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_aabc89a153dfd06e561eceaeebb925f0, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता - प्रेम वारबर्टनी कविता - Darsaal

ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता

ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता

मैं आख़िरी चराग़ हूँ सूरज के शहर का

बज़्म-ए-सुकूत-ए-दिल में है हलचल मची हुई

सारंगियाँ हैं किस के बदन की ग़ज़ल-सरा

मेरी बयाज़-ए-दर्द वो पढ़ कर बहुत हँसे

था नाम जिन का पहले वरक़ पर लिखा हुआ

देखा अजीब ख़्वाब अमावस की रात ने

हम चल रहे थे चाँद पे दोनों बरहना-पा

शोलों के हाथ थे कि ठिठुरते चले गए

फिर बर्फ़ का लिबास किसी ने पहन लिया

सोने की तश्तरी में सजा कर न फूल भेज

ये खेल मुझ ग़रीब से देखा न जाएगा

ख़ुशबू के ख़्वाब में न ढली ज़िंदगी मगर

चंदन की लकड़ियों से जलाना मिरी चिता

काग़ज़ की नाव आग के दरिया में डाल दी

क्या जाने और चाहती क्या है तिरी अना

ऐ दोस्त इस क़दर भी अकेला कोई न हो

मैं ख़ुद भी अपने साथ नहीं दूसरा तो क्या

ऐ 'प्रेम' यूँ तो धूम थी सारे जहान में

अपने ही घर में कोई हमें पूछता न था

(485) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Prem Warbartani. is written by Prem Warbartani. Complete Poem in Hindi by Prem Warbartani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.