रात की भीगी पलकों पर जब अश्क हमारे हँसते हैं
रात की भीगी पलकों पर जब अश्क हमारे हँसते हैं
सन्नाटों के साँप दिलों की तंहाई को डसते हैं
कल तक मय-ख़ाने में जिन के नाम का सिक्का चलता था
क़तरा क़तरा मय की ख़ातिर आज वो लोग तरसते हैं
ऐ मेरे मजरूह तबस्सुम रूप-नगर की रीत न पूछ
जिन के सीनों में पत्थर हैं उन पर फूल बरसते हैं
शहर-ए-हवस के सौदाई ख़ुद जिन की रूहें नंगी हैं
मेरे तन की उर्यानी पर आवाज़े क्यूँ कसते हैं
छीन सकेगा कौन सबा से लम्स हमारी साँसों का
हम फूलों की ख़ुशबू बन कर गुलज़ारों में बसते हैं
अश्कों की क़ीमत क्या जानें प्यार के झूटे सौदागर
इन सय्याल नगीनों से तो हीरे मोती सस्ते हैं
कौन आएगा नंगे पैरों शम्अ जला कर शाम ढले
'प्रेम' मोहब्बत की मंज़िल के बड़े भयानक रस्ते हैं
(433) Peoples Rate This