पहले तो बहुत गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ा हूँ
पहले तो बहुत गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ा हूँ
अब किस की तमन्ना है जो मक़्तल में खड़ा हूँ
गो क़द्र मिरी बज़्म-ए-सुख़न में नहीं लेकिन
हीरे की तरह फ़न की अँगूठी में जड़ा हूँ
ख़ैरात में बाँटे थे जहाँ मैं ने सितारे
ख़ुद आज वहीं कासा-ए-शब ले के खड़ा हूँ
होता कोई पत्थर भी तो काम आता जुनूँ के
टूटा हुआ शीशा हूँ सर-ए-राह पड़ा हूँ
सिमटूँ तो किसी सीप के सीने में समा जाऊँ
ऐ 'प्रेम' जो फैलूँ तो समुंदर से बड़ा हूँ
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