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कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह - प्रेम वारबर्टनी कविता - Darsaal

कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह

कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह

मिरा वजूद है जलते हुए मकाँ की तरह

भरी बहार का सीना है ज़ख़्म ज़ख़्म मगर

सबा ने गाई है लोरी शफ़ीक़ माँ की तरह

वो कौन था जो बरहना बदन चटानों से

लिपट गया था कभी बहर-ए-बे-कराँ की तरह

सुकूत-ए-दिल तो जज़ीरा है बर्फ़ का लेकिन

तिरा ख़ुलूस है सूरज के साएबाँ की तरह

मैं एक ख़्वाब सही आप की अमानत हूँ

मुझे सँभाल के रखिएगा जिस्म-ओ-जाँ की तरह

कभी तो सोच कि वो शख़्स किस क़दर था बुलंद

जो बिछ गया तिरे क़दमों में आसमाँ की तरह

बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत

गुज़र न जाए ये रुत भी कभी ख़िज़ाँ की तरह

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In Hindi By Famous Poet Prem Warbartani. is written by Prem Warbartani. Complete Poem in Hindi by Prem Warbartani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.