Ghazals of Prem Warbartani
नाम | प्रेम वारबर्टनी |
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अंग्रेज़ी नाम | Prem Warbartani |
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता
सलीक़ा है मुझे तारों से लौ लगाने का
रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब
रात की भीगी पलकों पर जब अश्क हमारे हँसते हैं
फिरते रहे अज़ल से अबद तक उदास हम
पहले तो बहुत गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ा हूँ
न पूछ दिल के ख़राबे से और क्या निकला
किस ने देखे होंगे अब तक ऐसे नए निराले पत्थर
कौन कहता है कि बेनाम-ओ-निशाँ हो जाऊँगा
कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
इस हक़ीक़त का हसीं ख़्वाबों को अंदाज़ा नहीं
हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह
हो गया हूँ हर तरफ़ बद-नाम तेरे शहर में
गुफ़्तुगू क्यूँ न करें दीदा-ए-तर से बादल
दुनिया सोचे शौक़ से सोचे आज और कल के बारे में
देखो कि दिल-जलों की क्या ख़ूब ज़िंदगी है
आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की
आज क्या देखा ख़लाओं के सुनहरे ख़्वाब में