तड़प कली की है ये इशरत-ए-नुमू के लिए
तड़प कली की है ये इशरत-ए-नुमू के लिए
कि इज़्तिराब है इरफ़ान रंग-ओ-बू के लिए
रुमूज़-ए-अर्श तो खुल जाएँगे कभी न कभी
हयात वक़्फ़ा है ख़ुद अपनी जुस्तुजू के लिए
कुछ इस क़दर दिल-ए-पुर-शौक़ बे-ख़बर भी नहीं
मगर ब-ज़िद है वो अंजाम-ए-आरज़ू के लिए
चमन में ग़ुंचे हुए माइल-ए-अज़ाँ जिस दम
लुटाई सुब्ह ने शबनम वहीं वुज़ू के लिए
शमीम-ए-गुलशन-ए-रिज़वाँ ब-सद नियाज़ आई
ख़िराज ले के तिरी ज़ुल्फ़-ए-मुश्कबू के लिए
जिगर का चाक ही मरहून-ए-बख़िया-गर क्यूँ हो
ये ख़ुद ही रिश्ता-ए-सोज़न भी है रफ़ू के लिए
नदीम किस के क़दम हैं ये ज़ेब-ए-काहकशाँ
चला ये कौन किधर किस की जुस्तुजू के लिए
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