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हयात-ए-ला-उबाली मुझ को 'फ़रहत' साज़गार आई - प्रेम शंकर गोयला फ़रहत कविता - Darsaal

हयात-ए-ला-उबाली मुझ को 'फ़रहत' साज़गार आई

हयात-ए-ला-उबाली मुझ को 'फ़रहत' साज़गार आई

कि इस्तिग़्ना में इशरत बे-नियाज़-ए-इज़्तिरार आई

सितम की राह से जब बेवफ़ाई कामगार आई

तो फिर राह-ए-मोहब्बत से वफ़ा क्यूँ सोगवार आई

फ़रेब-ए-यक तबस्सुम से क़बा-ए-गुल है सद-पारा

शगूफ़ों के लिए क्या क्या भरम ले कर बहार आई

मिरी क़िस्मत मुझे मंज़िल पे अब लाई तो क्या हासिल

जो दिन थे ज़िंदगी के वो तो रस्ते में गुज़ार आई

ये क्या अंदाज़-ए-क़स्साम-ए-अज़ल था क्या नवाज़िश थी

मिरे हिस्सा में ले दे कर हयात-ए-मुस्तआर आई

तही कश्कोल-ए-नर्गिस और है साग़र ब-कफ़ लाला

ये किस अंदाज़ से अब के बहार-ए-कम-अयार आई

मिरे काम-ओ-दहन की आज़माइश के लिए शायद

मय-ए-दो-आतिशा पैहम ब-रंग-ए-नूर-ओ-नार आई

हुई तौक़-ओ-सलासिल को हमारे जब कभी जुम्बिश

सदा-ए-रस्तगारी हम को 'फ़रहत' बार बार आई

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In Hindi By Famous Poet Prem Shankar Goila Farhat. is written by Prem Shankar Goila Farhat. Complete Poem in Hindi by Prem Shankar Goila Farhat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.