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गरेबान-ए-क़बा-ए-ज़ीस्त में इक तार बाक़ी है - प्रेम शंकर गोयला फ़रहत कविता - Darsaal

गरेबान-ए-क़बा-ए-ज़ीस्त में इक तार बाक़ी है

गरेबान-ए-क़बा-ए-ज़ीस्त में इक तार बाक़ी है

अजल दम ले अभी तो मंज़िल-ए-दुश्वार बाक़ी है

ज़रा ऐ दिल मोहब्बत का तराना तेज़-तर कर दे

अभी कुछ इम्तियाज़-ए-काफिर-ओ-दीं-दार बाक़ी है

सितमगारी को तन्हा क्यूँ शिआ'र-ए-आसमाँ समझूँ

अभी शरह-ए-मिज़ाज-ए-चर्ख़-ए-कज-रफ़तार बाक़ी है

बला-नोश इस ख़राबात-ए-जहाँ से किस क़दर गुज़रे

लब-ए-साग़र पे ज़िक्र-ए-रिन्द-ए-ख़ुश-अतवार बाक़ी है

रहे गर्म-ए-तवाफ़-ए-दैर-ओ-का'बा मुद्दतों लेकिन

तमन्ना-ए-तवाफ़-ए-आस्तान-ए-यार बाक़ी है

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In Hindi By Famous Poet Prem Shankar Goila Farhat. is written by Prem Shankar Goila Farhat. Complete Poem in Hindi by Prem Shankar Goila Farhat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.