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वक़्त क़रीब है फिर मंज़र के बदलने का - प्रेम कुमार नज़र कविता - Darsaal

वक़्त क़रीब है फिर मंज़र के बदलने का

वक़्त क़रीब है फिर मंज़र के बदलने का

सूरज की ज़िद देखो ये नहीं ढलने का

मैं भी तलाश-ए-आब-ए-हवस में निकला हूँ

शोर सुना था इक चश्मे के उबलने का

अहल-ए-जुनूँ क्यूँ दश्त में आना छोड़ दिया

भूल गए फ़न नोक-ए-ख़ार पे चलने का

सुब्ह तलक इस शहर में जाने क्या हो जाए

रिश्ता ढूँढो रातों-रात निकलने का

याद-ए-यार का आ जाना भी ठीक सही

राज़ मगर गहरा है दिल के मचलने का

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In Hindi By Famous Poet Prem Kumar Nazar. is written by Prem Kumar Nazar. Complete Poem in Hindi by Prem Kumar Nazar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.