उस तरफ़ क्या है ये कुछ खुलता नहीं
मेरा क़द दीवार से ऊँचा नहीं
देख आए उस को और देखा नहीं
मेरी आँखें अब मिरा हिस्सा नहीं
सोने को आई समुंदर पर हवा
और मेरा बादबाँ खुलता नहीं
गुम हैं सब अपनी सदा के शोर में
मैं जो कहता हूँ कोई सुनता नहीं
हम भी उस को भूल ही जाएँ 'नज़र'
वो भी हम को याद अब करता नहीं