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सूरज चढ़ा तो दिल को अजब वहम सा हुआ - प्रेम कुमार नज़र कविता - Darsaal

सूरज चढ़ा तो दिल को अजब वहम सा हुआ

सूरज चढ़ा तो दिल को अजब वहम सा हुआ

दुश्मन जो शब को मारा था वो उठ खड़ा हुआ

बिखरी हुई है रेत नदामत की ज़ेहन में

उतरा है जब से जिस्म का दरिया चढ़ा हुआ

ज़ुल्फ़ों की आबशार सिरहाने पे गिर पड़ी

खोला जो उस ने रात को जोड़ा बँधा हुआ

निकला करो पहन के न यूँ मुख़्तसर लिबास

पढ़ लेगा कोई लौह-ए-बदन पर लिखा हुआ

इक शख़्स जिस से मेरा तआरुफ़ नहीं मगर

गुज़रा है बार बार मुझे देखता हुआ

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In Hindi By Famous Poet Prem Kumar Nazar. is written by Prem Kumar Nazar. Complete Poem in Hindi by Prem Kumar Nazar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.