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इक पल की दौड़ धूप में ऐसा थका बदन - प्रेम कुमार नज़र कविता - Darsaal

इक पल की दौड़ धूप में ऐसा थका बदन

इक पल की दौड़ धूप में ऐसा थका बदन

मैं ख़ुद तो जागता हूँ मगर सो गया बदन

बच्चा भी देख ले तो हुमक कर लपक पड़े

ऐसी ही एक चीज़ है वो दूधिया बदन

जी चाहता है हाथ लगा कर भी देख लें

उस का बदन क़बा है कि उस की क़बा बदन

जब से चला है तंग क़मीसों का ये रिवाज

ना-आश्ना बदन भी लगे आश्ना बदन

गंगा के पानियों सा पवित्र कहें जिसे

आँखों के तट पे तैरता है जो गया बदन

बिस्तर पे तेरे मेरे सिवा और कौन है

महसूस हो रहा है कोई तीसरा बदन

धरती ने मौसमों का असर कर लिया क़ुबूल

रुत फिर गई तो हो गया उस का हरा बदन

इस को कहाँ कहाँ से रफ़ू कीजिए 'नज़र'

बेहतर यही है ओढ़िए अब दूसरा बदन

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In Hindi By Famous Poet Prem Kumar Nazar. is written by Prem Kumar Nazar. Complete Poem in Hindi by Prem Kumar Nazar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.