तू अगर बेटियाँ नहीं लिखता
तू अगर बेटियाँ नहीं लिखता
तो समझ खिड़कियाँ नहीं लिखता
सर्दियाँ जो थीं सब सहीं मैं ने
धूप को अरजियाँ नहीं लिखता
जब शहर पूछता नहीं उस को
गाँव भी चिट्ठियाँ नहीं लिखता
मैं हवा के गुनाह के बदले
आग की ग़लतियाँ नहीं लिखता
पेज सादा ही छोड़ देता हूँ
मैं कभी तल्ख़ियाँ नहीं लिखता
इस में बच्चे का है गुनाह कहाँ
वो अगर तितलियाँ नहीं लिखता
(548) Peoples Rate This