समय की धूप में कैसा भी ग़ुस्सा सूख जाता है
समय की धूप में कैसा भी ग़ुस्सा सूख जाता है
मगर मैं क्या करूँ लहजा भी मेरा सूख जाता है
उसे तालाब झरने झील से झड़ना ज़रूरी है
सफ़र में तन्हा चलने वाला दरिया सूख जाता है
भरोसा एक मरहम की तरह मौजूद रहता है
अगर ये पास हो तो ज़ख़्म सारा सूख जाता है
उसूलों की चमक जाते ही चेहरा बुझ गया उस का
जड़ें कटते ही जैसे पेड़ सारा सूख जाता है
कोई कैसा भी रिश्ता हो नमी बेहद ज़रूरी है
हवा रूखी हो तो कोई भी पौदा सूख जाता है
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