रियासत जब भी ढहती है नवासे दुख उठाते हैं
रियासत जब भी ढहती है नवासे दुख उठाते हैं
कहीं पंचर बनाते हैं कहीं तांगा चलाते हैं
बड़ी मुश्किल से ये दो वक़्त की रोटी कमाते हैं
सहर से शाम तक फ़ुटपाथ पर क़िस्मत बनाते हैं
जमूरा सर खुजाता है मदारी हाथ मलता है
तमाशा देख कर बद-मआ'श बच्चे भाग जाते हैं
किसी के साथ रहना और उस से बच के रह लेना
ख़ुदा ही जाने कैसे लोग ये रिश्ता निभाते हैं
हज़ारों लोग मिलते हैं तो उन में इक समझता है
बड़ी मुश्किल से हम भी दोस्ती में सर झुकाते हैं
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